पहली ढाल
तीन à¤à¥à¤µà¤¨ में सार, वीतराग विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ ।
शिवसà¥à¤µà¤°à¥‚प शिवकार, नमहà¥à¤ तà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤— समà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•ैं॥
जे तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤µà¤¨ में जीव अननà¥à¤¤, सà¥à¤– चाहैं दà¥:खतैं à¤à¤¯à¤µà¤¨à¥à¤¤ ।
तातैं दà¥:खहारि सà¥à¤–कार, कहैं सीख गà¥à¤°à¥ करà¥à¤£à¤¾ धार॥ 1॥
ताहि सà¥à¤¨à¥‹ à¤à¤µà¤¿ मन थिर आन, जो चाहो अपनो कलà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥¤
मोह-महामद पियो अनादि, à¤à¥‚ल आपको à¤à¤°à¤®à¤¤ वादि॥2॥
तास à¤à¥à¤°à¤®à¤£ की है बहॠकथा, पै कछॠकहूठकही मà¥à¤¨à¤¿ यथा।
काल अननà¥à¤¤ निगोद मंà¤à¤¾à¤°, बीतà¥à¤¯à¥‹ à¤à¤•ेनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€-तन धार॥ 3॥
à¤à¤• शà¥à¤µà¤¾à¤¸ में अठदस बार, जनà¥à¤®à¥à¤¯à¥‹ मरà¥à¤¯à¥‹ à¤à¤°à¥à¤¯à¥‹ दà¥:ख à¤à¤¾à¤°à¥¤
निकसि à¤à¥‚मि-जल-पावकà¤à¤¯à¥‹,पवन-पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤•वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ थयो॥4॥
दà¥à¤°à¥à¤²à¤ लहि जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चिनà¥à¤¤à¤¾à¤®à¤£à¤¿, तà¥à¤¯à¥‹à¤‚ परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ लही तà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤£à¥€à¥¤
लट पिपीलि अलि आदि शरीर, धरिधरि मरà¥à¤¯à¥‹ सही बहà¥à¤ªà¥€à¤°à¥¥5॥
कबहूठपंचेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯ पशॠà¤à¤¯à¥‹, मन बिन निपट अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ थयो।
सिंहादिक सैनी हà¥à¤µà¥ˆ कूà¥à¤°à¤°, निबल-पशॠहति खाये à¤à¥‚र॥ 6॥
कबहूठआप à¤à¤¯à¥‹ बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन।
छेदन à¤à¥‡à¤¦à¤¨ à¤à¥‚ख पियास, à¤à¤¾à¤° वहन हिम आतप तà¥à¤°à¤¾à¤¸ ॥ 7॥
वध-बनà¥à¤§à¤¨ आदिक दà¥:ख घने, कोटि जीà¤à¤¤à¥ˆà¤‚ जात न à¤à¤¨à¥‡ ।
अति संकà¥à¤²à¥‡à¤¶-à¤à¤¾à¤µà¤¤à¥ˆà¤‚ मरà¥à¤¯à¥‹, घोर शà¥à¤µà¤à¥à¤°-सागर में परà¥à¤¯à¥‹à¥¥ 8॥
तहाठà¤à¥‚मि परसत दà¥:ख इसो, बिचà¥à¤›à¥‚ सहस डसै नहिं तिसो ।
तहाठराध शà¥à¤°à¥‹à¤£à¤¿à¤¤-वाहिनी,कृमि-कà¥à¤²-कलितदेहदाहिनी॥9॥
सेमर-तरà¥- दल जà¥à¤¤ असिपतà¥à¤°, असि जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ देह विदारै ततà¥à¤°à¥¤
मेरॠसमान लोह गलि जाय,à¤à¤¸à¥€ शीत उषà¥à¤£à¤¤à¤¾ थाय ॥ 10॥
तिल-तिल करैं देह के खणà¥à¤¡, असà¥à¤° à¤à¤¿à¤¡à¤¾à¤µà¥ˆà¤‚ दà¥à¤·à¥à¤Ÿ पà¥à¤°à¤šà¤£à¥à¤¡à¥¤
सिनà¥à¤§à¥-नीरतैं पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ न जाय, तो पण à¤à¤• न बूà¤à¤¦ लहाय॥ 11॥
तीन लोक को नाज जॠखाय, मिटै न à¤à¥‚ख कणा न लहाय।
ये दà¥:ख बहॠसागर लौं सहै, करम जोग तैं नर गति लहै॥12॥
जननी-उदर वसà¥à¤¯à¥‹ नव मास, अंग-सकà¥à¤šà¤¤à¥ˆà¤‚ पाई तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¥¤
निकसत जे दà¥:ख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर॥13॥
बालपने में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न लहà¥à¤¯à¥‹, तरà¥à¤£ समय तरà¥à¤£à¥€à¤°à¤¤ रहà¥à¤¯à¥‹à¥¤
अरà¥à¤§à¤®à¥ƒà¤¤à¤• सम बूढापनों, कैसे रूप लखै आपनो ॥ 14॥
कà¤à¥€ अकाम निरà¥à¤œà¤°à¤¾ करै, à¤à¤µà¤¨à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤• में सà¥à¤°-तन धरै।
विषयचाह-दावानल दहà¥à¤¯à¥‹, मरत विलाप करत दà¥:ख सहà¥à¤¯à¥‹à¥¥15॥
जो विमानवासी हूठथाय, समà¥à¤¯à¤—à¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ बिन दà¥:ख पाय।
तहठते चय थावर-तन धरै, यों परिवरà¥à¤¤à¤¨ पूरे करै ॥ 16॥
दूसरी ढाल
à¤à¤¸à¥‡ मिथà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥ƒà¤—-जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤šà¤°à¤£,वश à¤à¥à¤°à¤®à¤¤ à¤à¤°à¤¤ दà¥:ख जनà¥à¤®-मरण।
तातैं इनको तजिये सà¥à¤œà¤¾à¤¨, सà¥à¤¨ तिन संकà¥à¤·à¥‡à¤ª कहूठबखान॥1॥
जीवादि पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨à¤à¥‚त ततà¥à¤¤à¥à¤µ, सरधै तिनमाà¤à¤¹à¤¿ विपरà¥à¤¯à¤¯à¤¤à¥à¤µà¥¤
चेतन को है उपयोग रूप, विन मूरति चिनà¥à¤®à¥‚रति अनूप॥ 2॥
पà¥à¤¦à¥à¤—ल नठधरà¥à¤® अधरà¥à¤® काल, इनतैं नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ है जीव-चाल।
ताकों न जान विपरीत मान, करि करै देह में निज पिछान।। 3॥
मैं सà¥à¤–ी दà¥à¤–ी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥¤
मेरे सà¥à¤¤ तिय मैं सबल दीन, बेरूप सà¥à¤à¤— मूरख पà¥à¤°à¤µà¥€à¤¨à¥¥ 4॥
तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान।
रागादि पà¥à¤°à¤—ट जे दà¥:ख दैन, तिनही को सेवत गिनत चैन॥ 5॥
शà¥à¤-अशà¥à¤-बनà¥à¤§ के फल मंà¤à¤¾à¤°,रति अरति करै निजपद विसार।
आतमहित-हेतॠविराग-जà¥à¤žà¤¾à¤¨, ते लखें आपको कषà¥à¤Ÿ दान॥ 6॥
रोके न चाह निज शकà¥à¤¤à¤¿ खोय, शिवरूप निराकà¥à¤²à¤¤à¤¾ न जोय।
याही पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤¤ कछà¥à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨, सो दà¥:खदायक अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ जान॥ 7॥
इन जà¥à¤¤ विषयनि में जो पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤, ताको जानहॠमिथà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¥¤
यों मिथà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ निसरà¥à¤— जेह, अब जे गृहीत सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡ सॠतेह॥ 8॥
जे कà¥à¤—à¥à¤°à¥ कà¥à¤¦à¥‡à¤µ कà¥à¤§à¤°à¥à¤® सेव, पोषैं चिर दरà¥à¤¶à¤¨à¤®à¥‹à¤¹ à¤à¤µà¥¤
अनà¥à¤¤à¤° रागादिक धरैं जेह, बाहर धन अमà¥à¤¬à¤°à¤¤à¥ˆà¤‚ सनेह॥ 9॥
धारैं कà¥à¤²à¤¿à¤‚ग लहि महत-à¤à¤¾à¤µ, ते कà¥à¤—à¥à¤°à¥ जनà¥à¤®-जल-उपल-नाव।
जे रागदà¥à¤µà¥‡à¤·-मल करि मलीन, वनिता गदादिजà¥à¤¤ चिहà¥à¤¨ चीन10
ते हैं कà¥à¤¦à¥‡à¤µ तिनकी जॠसेव, शठकरत न तिन à¤à¤µà¤à¥à¤°à¤®à¤£-छेव।
रागादि-à¤à¤¾à¤µ हिंसा समेत, दरà¥à¤µà¤¿à¤¤ तà¥à¤°à¤¸-थावर मरन-खेत॥ 11॥
जे कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ तिनà¥à¤¹à¥ˆà¤‚ जानहॠकà¥à¤§à¤°à¥à¤®, तिन सरधै जीव लहै अशरà¥à¤®à¥¤
याकूठगृहीत मिथà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤µ जान, अब सà¥à¤¨ गृहीत जो है अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥¥12॥
à¤à¤•ानà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤¦ दूषित समसà¥à¤¤, विषयादिक-पोषक अपà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤à¥¤
कपिलादिरचित शà¥à¤°à¥à¤¤ को अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸, सो है कà¥à¤¬à¥‹à¤§ बहॠदेन तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¥¥13॥
जो खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿-लाठपूजादि चाह, धरि करन विविध-विध देहदाह।
आतम अनातà¥à¤® के जà¥à¤žà¤¾à¤¨-हीन, जे जे करनी तन करन-छीन॥14॥
ते सब मिथà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤—, अब आतम के हित-पनà¥à¤¥ लाग।
जगजाल à¤à¥à¤°à¤®à¤£ को देहॠतà¥à¤¯à¤¾à¤—, अब ‘दौलत’ निज आतम सà¥à¤ªà¤¾à¤—
तीसरी ढाल
आतम को हित है सà¥à¤–, सो सà¥à¤– आकà¥à¤²à¤¤à¤¾ बिन कहिये।
आकà¥à¤²à¤¤à¤¾ शिवमाà¤à¤¹à¤¿ न तातैं, शिव-मग लागà¥à¤¯à¥‹ चहिये॥
समà¥à¤¯à¤—à¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ - जà¥à¤žà¤¾à¤¨ - चरन शिवमग सो दà¥à¤µà¤¿à¤§ विचारो।
जो सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¥à¤°à¥‚प सॠनिशà¥à¤šà¤¯, कारन सो वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¥¥1॥
पर-दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¤¨à¤¤à¥ˆà¤‚ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ आप में, रà¥à¤šà¤¿ समà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¥à¤µ à¤à¤²à¤¾ है।
आप रूप को जानपनो, सो समà¥à¤¯à¤—à¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ कला है॥
आप रूप में लीन रहे थिर, समà¥à¤¯à¤•à¥à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¥à¤° सोई।
अब वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° मोकà¥à¤· मग सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡, हेतॠनियत को होई॥2॥
जीव-अजीव ततà¥à¤¤à¥à¤µ अरॠआसà¥à¤°à¤µ, बनà¥à¤§à¤°à¥ संवर जानो।
निरà¥à¤œà¤° मोकà¥à¤· कहे जिन तिनको, जà¥à¤¯à¥Œà¤‚ का तà¥à¤¯à¥Œà¤‚ सरधानो॥
है सोई समकित वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¥€, अब इन रूप बखानो।
तिनको सà¥à¤¨à¤¿ सामानà¥à¤¯-विशेषै, दृढ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤à¤¿ उर आनो॥3॥
बहिरातम, अनà¥à¤¤à¤°-आतम, परमातम जीव तà¥à¤°à¤¿à¤§à¤¾ है ।
देह जीव को à¤à¤• गिनै बहिरातम - ततà¥à¤¤à¥à¤µ मà¥à¤§à¤¾ है ॥
उतà¥à¤¤à¤® मधà¥à¤¯à¤® जघन तà¥à¤°à¤¿à¤µà¤¿à¤§ के, अनà¥à¤¤à¤°-आतम-जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€à¥¤
दà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¿à¤§ संग बिन शà¥à¤§-उपयोगी, मà¥à¤¨à¤¿ उतà¥à¤¤à¤® निजधà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥€à¥¥4॥
मधà¥à¤¯à¤® अनà¥à¤¤à¤° आतम हैं जे, देशवà¥à¤°à¤¤à¥€ अनगारी।
जघन कहे अविरत - समदृषà¥à¤Ÿà¥€, तीनों शिवमगचारी॥
सकल निकल परमातम दà¥à¤µà¥ˆà¤µà¤¿à¤§, तिनमें घाति निवारी।
शà¥à¤°à¥€ अरहनà¥à¤¤ सकल परमातम, लोकालोक-निहारी॥5॥
जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¤°à¥€à¤°à¥€ तà¥à¤°à¤¿à¤µà¤¿à¤§ करà¥à¤®à¤®à¤² - वरà¥à¤œà¤¿à¤¤, सिदà¥à¤§ महनà¥à¤¤à¤¾à¥¤
ते हैं निकल अमल परमातम, à¤à¥‹à¤—ैं शरà¥à¤® अननà¥à¤¤à¤¾à¥¥
बहिरातमता हेय जानि तजि, अनà¥à¤¤à¤° आतम हूजै।
परमातम को धà¥à¤¯à¤¾à¤¯ निरनà¥à¤¤à¤°, जो नित आननà¥à¤¦ पूजै॥6॥
चेतनता बिन सो अजीव हैं, पञà¥à¤š à¤à¥‡à¤¦ ताके हैं।
पà¥à¤¦à¥à¤—ल पंच वरन रस गनà¥à¤§ दो, फरस वसॠजाके हैं॥
जिय - पà¥à¤¦à¥à¤—ल को चलन सहाई, धरà¥à¤® दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अनरूपी।
तिषà¥à¤ त होय अधरà¥à¤® सहाई, जिन बिनमूरà¥à¤¤à¤¿ निरूपी॥7॥
सकल - दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ को वास जास में, सो आकाश पिछानो।
नियत वरतना निशि-दिन सो, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° काल परिमानो॥
यों अजीव, अब आसà¥à¤°à¤µ सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡, मन-वच-काय तà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ा।
मिथà¥à¤¯à¤¾ अविरत अरॠकषाय, परमादसहित उपयोगा॥8॥
ये ही आतम को दà¥:ख - कारन, तातैं इनको तजिये।
जीव-पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ बà¤à¤§à¥ˆ विधि सों सो, बनà¥à¤§à¤¨ कबहà¥à¤ न सजिये॥
शम-दमतैं जो करà¥à¤® न आवैं, सो संवर आदरिये।
तप-बलतैं विधि-à¤à¤°à¤¨ निरजरा, ताहि सदा आचरिये॥9॥
सकल-करमतैं रहित अवसà¥à¤¥à¤¾, सो शिव, थिर सà¥à¤–कारी।
इहिविधि जो सरधा ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤¨ की, सो समकित वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¥€à¥¤
देव जिनेनà¥à¤¦à¥à¤° गà¥à¤°à¥ परिगà¥à¤°à¤¹ बिन, धरà¥à¤® दयाजà¥à¤¤ सारो।
येहू मान समकित को कारन, अषà¥à¤Ÿ अंग-जà¥à¤¤ धारो॥10॥
वसॠमद टारि निवारि तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¤ ता, षटॠअनायतन तà¥à¤¯à¤¾à¤—ो।
शंकादिक वसॠदोष बिना संवेगादिक चित पागो॥
अषà¥à¤Ÿ अंग अरॠदोष पचीसों, तिन संकà¥à¤·à¥‡à¤ª हॠकहिये।
विन जानेतैं दोष-गà¥à¤¨à¤¨ को, कैसे तजिये गहिये॥11॥
जिन-वच में शंका न, धारि वृष, à¤à¤µ-सà¥à¤–-वांछा à¤à¤¾à¤¨à¥ˆà¥¤
मà¥à¤¨à¤¿-तन मलिन न देख घिनावै, ततà¥à¤¤à¥à¤µ कà¥à¤¤à¤¤à¥à¤¤à¥à¤µ पिछानै॥
निज-गà¥à¤¨ अरॠपर औगà¥à¤¨ ढाकै, वा निज-धरà¥à¤®-बढ़ावै।
कामादिक कर वृषतैं चिगते, निज-पर को सॠदृढ़ावै॥12॥
धरà¥à¤®à¥€à¤¸à¥‹à¤‚ गउ-वचà¥à¤›-पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿-सम, कर जिन-धरà¥à¤® दिपावै।
इन गà¥à¤¨à¤¤à¥ˆà¤‚ विपरीत दोष वसà¥, तिनकों सतत खिपावै॥
पिता à¤à¥‚प वा मातà¥à¤² नृप जो, होय न तो मद ठानै।
मद न रूप को, मद न जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को, धन बल को मद à¤à¤¾à¤¨à¥ˆà¥¥13॥
तप को मद, न मद जॠपà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ को, करै न सो निज जानै।
मद धारै तो येही दोष वसà¥, समकित को मल ठानै॥
कà¥à¤—à¥à¤°à¥-कà¥à¤¦à¥‡à¤µ-कà¥à¤µà¥ƒà¤·-सेवक की, नहिं पà¥à¤°à¤¶à¤‚स उचरै है।
जिनमà¥à¤¨à¤¿ जिनशà¥à¤°à¥à¤¤ बिन, कà¥à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿à¤• तिनà¥à¤¹à¥ˆà¤‚ न नमन करै है॥14॥
दोषरहित गà¥à¤¨à¤¸à¤¹à¤¿à¤¤ सà¥à¤§à¥€ जे, समà¥à¤¯à¤•à¥à¤¦à¤°à¥à¤¶ सजै हैं।
चरितमोहवश लेश न संजम, पै सà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ जजै हैं॥
गेही पै गृह में न रचै जà¥à¤¯à¥‹à¤‚, जलतैं à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कमल है।
नगरनारि को पà¥à¤¯à¤¾à¤° यथा, कादे में हेम अमल है॥15॥
पà¥à¤°à¤¥à¤® नरक बिन षटॠà¤à¥‚ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·, वान à¤à¤µà¤¨ षंढ नारी।
थावर विकलतà¥à¤°à¤¯ पशॠमें नहिं, उपजत समकितधारी॥
तीन लोक तिहà¥à¤ काल माà¤à¤¹à¤¿ नहिं, दरà¥à¤¶à¤¨à¤¸à¥‹ सà¥à¤–कारी।
सकल धरम को मूल यही इस, बिन करनी दà¥à¤–कारी॥16॥
मोकà¥à¤·-महल की परथम सीढ़ी, या बिन जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चरितà¥à¤°à¤¾à¥¤
समà¥à¤¯à¤•ता न लहै सो दरà¥à¤¶à¤¨, धारो à¤à¤µà¥à¤¯ पवितà¥à¤°à¤¾à¥¥
‘दौल’ समठसà¥à¤¨ चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै।
यह नर-à¤à¤µ फिर मिलन कठिन है, जो समà¥à¤¯à¤•ॠनहिं होवै॥ 17॥
चौथी ढाल
समà¥à¤¯à¤•à¥à¤¶à¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ धारि पà¥à¤¨à¤¿, सेवहॠसमà¥à¤¯à¤—à¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥¤
सà¥à¤µ-पर अरà¥à¤¥ बहॠधरà¥à¤®à¤œà¥à¤¤, जो पà¥à¤°à¤•टावन à¤à¤¾à¤¨à¥¥
समà¥à¤¯à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¥à¥ˆ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होय पै à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अराधो।
लकà¥à¤·à¤£ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ जान दà¥à¤¹à¥‚में à¤à¥‡à¤¦ अबाधो॥
समà¥à¤¯à¤•ॠकारण जान जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कारज है सोई।
यà¥à¤—पतॠहोतैं हूठपà¥à¤°à¤•ाश दीपक तैं होई ॥ 1॥
तास à¤à¥‡à¤¦ दो हैं परोकà¥à¤· परतछ तिनमाहीं।
मति शà¥à¤°à¥à¤¤ दोय परोकà¥à¤· अकà¥à¤· मन तैं उपजाहीं॥
अवधिजà¥à¤žà¤¾à¤¨ मनपरà¥à¤œà¤¯, दो हैं देशपà¥à¤°à¤¤à¤šà¥à¤›à¤¾à¥¤
दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯-कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°-परिमान लिये, जानैं जिय सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¾à¥¥ 2॥
सकल दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¤•े गà¥à¤£ अननà¥à¤¤ परजाय अननà¥à¤¤à¤¾à¥¤
जानैं à¤à¤•ै काल पà¥à¤°à¤—ट केवलि à¤à¤—वनà¥à¤¤à¤¾à¥¥
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ समान न आन जगत में सà¥à¤– को कारन।
इह परमामृत जनà¥à¤® जरा-मृत-रोग-निवारन॥ 3॥
कोटि जनà¥à¤® तप तपैं, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ बिन करà¥à¤® à¤à¤°à¥ˆà¤‚ जे।
जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ के छिन माà¤à¤¹à¤¿, तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤ªà¥à¤¿à¤¤ तैं सहज टरैं ते॥
मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¥à¤°à¤¤ धार, अननà¥à¤¤ बार गà¥à¤°à¥€à¤µà¤• उपजायो।
पै निजआतमजà¥à¤žà¤¾à¤¨ बिना, सà¥à¤– लेश न पायो॥4॥
तातैं जिनवर-कथित, ततà¥à¤¤à¥à¤µ अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करीजै।
संशय विà¤à¥à¤°à¤® मोह तà¥à¤¯à¤¾à¤—, आपो लखि लीजै॥
यह मानà¥à¤·-परजाय, सà¥à¤•à¥à¤² सà¥à¤¨à¤¿à¤µà¥‹ जिन-वानी।
इह विधि गये न मिलैं,सà¥à¤®à¤£à¤¿ जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उदधि समानी ॥5॥
धन समाज गज बाज, राज तो काज न आवै।
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आपको रूप à¤à¤¯à¥‡, फिर अचल रहावै॥
तास जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को कारन सà¥à¤µ-पर-विवेक बखानो।
कोटि उपाय बनाय à¤à¤µà¥à¤¯ ताको उर आनो ॥ 6॥
जे पूरब शिव गये, जाहिं अरॠआगे जै हैं।
सो सब महिमा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¨à¥€, मà¥à¤¨à¤¿à¤¨à¤¾à¤¥ कहै हैं॥
विषय-चाह-दव-दाह,जगत-जन अरनि दà¤à¤¾à¤µà¥ˆà¥¤
तास उपाय न आन जà¥à¤žà¤¾à¤¨-घनघान बà¥à¤à¤¾à¤µà¥ˆ ॥ 7॥
पà¥à¤£à¥à¤¯-पाप-फलमाहिं हरख विलखौ मत à¤à¤¾à¤ˆà¥¤
यह पà¥à¤¦à¥à¤—ल-परजाय उपजि विनसै फिर थाई॥
लाख बात की बात यहै निशà¥à¤šà¤¯ उर लावो।
तोरि सकलजग-दनà¥à¤¦-फनà¥à¤¦ निज-आतम धà¥à¤¯à¤¾à¤µà¥‹à¥¥8॥
समà¥à¤¯à¤—à¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होय बहà¥à¤°à¤¿ दृढ़ चारित लीजै।
à¤à¤•देश अरॠसकलदेश, तसॠà¤à¥‡à¤¦ कहीजै॥
तà¥à¤°à¤¸-हिंसा को तà¥à¤¯à¤¾à¤—, वृथा थावर न सà¤à¤˜à¤¾à¤°à¥ˆà¥¤
पर-वधकार कठोर निनà¥à¤¦à¥à¤¯, नहिं वयन उचारै॥ 9॥
जल मृतिका बिन और नाहिं कछॠगहै अदतà¥à¤¤à¤¾à¥¤
निज वनिता बिन सकल नारि सों रहै विरतà¥à¤¤à¤¾à¥¤
अपनी शकà¥à¤¿à¤¤ विचार, परिगà¥à¤°à¤¹ थोरो राखै।
दश दिश गमन-पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¨, ठान तसॠसीम न नाखै॥10॥
ताहू में फिर गà¥à¤°à¤¾à¤®, गली गृह बाग बजारा।
गमनागमन पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¨, ठान अन सकल निवारा॥
काहू की धन-हानि, किसी जय हार न चिनà¥à¤¤à¥ˆà¤‚।
देय न सो उपदेश होय अघ बनिज कृषी तैं॥ 11॥
कर पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ जल à¤à¥‚मि, वृकà¥à¤· पावक न विराधै।
असि धनॠहल हिंसोपकरन, नहिं दे जस लाधै॥
राग-दà¥à¤µà¥‡à¤·-करतार, कथा कबहूठन सà¥à¤¨à¥€à¤œà¥ˆà¥¤
और हॠअनरथदणà¥à¤¡-हेतà¥, अघ तिनà¥à¤¹à¥ˆà¤‚ न कीजै॥ 12॥
धर उर समता-à¤à¤¾à¤µ, सदा सामायिक करिये।
परव - चतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¯à¤®à¤¾à¤¹à¤¿à¤‚, पाप तजि पà¥à¤°à¥‹à¤·à¤§ धरिये॥
à¤à¥‹à¤— और उपà¤à¥‹à¤—, नियम करि ममत निवारै।
मà¥à¤¨à¤¿ को à¤à¥‹à¤œà¤¨ देय, फेर निज करहि अहारै॥13॥
बारह वà¥à¤°à¤¤ के अतीचार, पन-पन न लगावै।
मरण समय संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ धारि, तसॠदोष नसावै॥
यों शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• वà¥à¤°à¤¤ पाल, सà¥à¤µà¤°à¥à¤— सोलम उपजावै।
तहंतै चय नर-जनà¥à¤® पाय मà¥à¤¨à¤¿ हà¥à¤µà¥ˆ शिव जावै॥ 14॥
पाà¤à¤šà¤µà¥€ ढाल
मà¥à¤¨à¤¿ सकलवà¥à¤°à¤¤à¥€ बड़à¤à¤¾à¤—ी, à¤à¤µà¤à¥‹à¤—न तैं वैरागी।
वैरागà¥à¤¯ उपावन माई, चिनà¥à¤¤à¥ˆà¤‚ अनà¥à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¤¾ à¤à¤¾à¤ˆà¥¥ 1॥
इन चिनà¥à¤¤à¤¤ समसà¥à¤– जागै, जिमि जà¥à¤µà¤²à¤¨ पवन के लागै।
जब ही जिय आतम जानै, तब ही जिय शिवसà¥à¤– ठानै2॥
जोवन गृह गोधन नारी, हय गय जन आजà¥à¤žà¤¾à¤•ारी।
इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥‹à¤— छिन थाई, सà¥à¤°à¤§à¤¨à¥ चपला चपलाई ॥ 3॥
सà¥à¤° असà¥à¤° खगाधिप जेते, मृग जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हरि काल दले ते।
मणि मनà¥à¤¤à¥à¤° तनà¥à¤¤à¥à¤° बहॠहोई, मरते न बचावै कोई ॥ 4॥
चहà¥à¤à¤—ति दà¥:ख जीव à¤à¤°à¥ˆ हैं, परिवरà¥à¤¤à¤¨ पंच करै हैं।
सब विधि संसार असारा, यामें सà¥à¤– नाहिं लगारा ॥ 5॥
शà¥à¤-अशà¥à¤ करम फल जेते, à¤à¥‹à¤—ैं जिय à¤à¤•हिं तेते।
सà¥à¤¤ दारा होय न सीरी, सब सà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¥ के हैं à¤à¥€à¤°à¥€ ॥ 6॥
जल-पय जà¥à¤¯à¥Œà¤‚ जिय-तन मेला, पै à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ नहिं à¤à¥‡à¤²à¤¾à¥¤
तो पà¥à¤°à¤—ट जà¥à¤¦à¥‡ धन-धामा, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हà¥à¤µà¥ˆ इक मिलि सà¥à¤¤ रामा॥ 7॥
पल-रà¥à¤§à¤¿à¤° राध-मल-थैली, कीकस वसादि तैं मैली।
नवदà¥à¤µà¤¾à¤° बहैं घिनकारी, अस देह करै किम यारी ॥ 8॥
जो जोगन की चपलाई, तातैं हà¥à¤µà¥ˆ आसà¥à¤°à¤µ à¤à¤¾à¤ˆà¥¤
आसà¥à¤°à¤µ दà¥à¤–कार घनेरे, बà¥à¤§à¤¿à¤µà¤¨à¥à¤¤ तिनà¥à¤¹à¥ˆà¤‚ निरवेरे ॥ 9॥
जिन पà¥à¤£à¥à¤¯-पाप नहिं कीना, आतम अनà¥à¤à¤µ चित दीना।
तिन ही विधि आवत रोके, संवर लहि सà¥à¤– अवलोके॥10॥
निज काल पाय विधि à¤à¤°à¤¨à¤¾, तासौं निज-काज न सरना।
तप करि जो करà¥à¤® खिपावै,सोई शिवसà¥à¤– दरसावै ॥11॥
किन हू न करà¥à¤¯à¥‹ न धरै को, षटà¥à¤¦à¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ न हरै को।
सो लोकमाà¤à¤¹à¤¿à¤‚ बिन समता,दà¥:ख सहै जीव नित à¤à¥à¤°à¤®à¤¤à¤¾12॥
अनà¥à¤¤à¤¿à¤® गà¥à¤°à¥€à¤µà¤• लौं की हद, पायो अननà¥à¤¤ बिरियाठपद।
पर समà¥à¤¯à¤—à¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ न लाधौ, दà¥à¤°à¥à¤²à¤ निज में मà¥à¤¨à¤¿ साधौ ॥13॥
जे à¤à¤¾à¤µ मोह तैं नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡, दृग जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤¦à¤¿à¤• सारे।
सो धरà¥à¤® जबै जिय धारै, तब ही सà¥à¤– अचल निहारै ॥14॥
सो धरà¥à¤® मà¥à¤¨à¤¿à¤¨ करि धरिये, तिनकी करतूति उचरिये।
ताको सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡ à¤à¤µà¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€, अपनी अनà¥à¤à¥‚ति पिछानी॥15॥
छठवीं ढाल
षटà¥à¤•ाय जीव न हनन तैं, सब विधि दरब-हिंसा टरी।
रागादि à¤à¤¾à¤µ निवारतैं, हिंसा न à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ अवतरी॥
जिनके न लेश मृषा न जल मृण हू बिना दीयो गहैं।
अठदशसहस विधि शीलधर, चिदà¥à¤¬à¥à¤°à¤¹à¥à¤® में नित रमि रहैं1॥
अनà¥à¤¤à¤° चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶ à¤à¥‡à¤¦ बाहिर, संग दशधा तैं टलैं।
परमाद तजि चउ कर मही लखि, समिति ईरà¥à¤¯à¤¾ तैं चलैं॥
जग सà¥à¤¹à¤¿à¤¤à¤•र सब अहितहर, शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤–द सब संशय हरैं।
à¤à¥à¤°à¤®-रोग-हर जिनके वचन, मà¥à¤–चनà¥à¤¦à¥à¤° तैं अमृत à¤à¤°à¥ˆà¤‚॥ 2॥
छà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥€à¤¸ दोष बिना सà¥à¤•à¥à¤², शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• तनैं घर अशन को।
लैं तप बढ़ावन हेतà¥, नहिं तन पोषते तजि रसन को।
शà¥à¤šà¤¿ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ संयम उपकरण, लखिकैं गहैं लखिकैं धरैं।
निरà¥à¤œà¤¨à¥à¤¤à¥ थान विलोक तन-मल, मूतà¥à¤° शà¥à¤²à¥‡à¤·à¤® परिहरैं॥ 3॥
समà¥à¤¯à¤•ॠपà¥à¤°à¤•ार निरोध मन-वच-काय आतम धà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¤à¥‡à¥¤
तिन सà¥à¤¥à¤¿à¤°-मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ देखि मृग-गण, उपल खाज खà¥à¤œà¤¾à¤µà¤¤à¥‡à¥¥
रस रूप गनà¥à¤§ तथा फरस, अरॠशबà¥à¤¦ शà¥à¤ असà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¥‡à¥¤
तिनमें न राग विरोध, पंचेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯-जयन पद पावने॥ 4॥
समता समà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥ˆà¤‚ थà¥à¤¤à¤¿ उचारैं, वनà¥à¤¦à¤¨à¤¾ जिनदेव को।
नित करैं शà¥à¤°à¥à¤¤à¤°à¤¤à¤¿ करै पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤®, तजैं तन अहमेव को॥
जिनके न नà¥à¤¹à¥Œà¤‚न न दनà¥à¤¤-धोवन, लेश अमà¥à¤¬à¤° आवरन।
à¤à¥‚माहिं पिछली रयनि में कछà¥, शयन à¤à¤•ासन करन॥5॥
इक बार दिन में लैं अहार, खड़े अलप निज पान में।
कचलोंच करत न डरत परीषह, सों लगे निज धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में॥
अरि मितà¥à¤° महल मसान कंचन-काच निनà¥à¤¦à¤¨-थà¥à¤¤à¤¿ करन।
अरà¥à¤˜à¤¾à¤µà¤¤à¤¾à¤°à¤¨ असि-पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤°à¤¨, में सदा समता धरन ॥ 6॥
तप तपै दà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¶ धरैं वृष दश, रतà¥à¤¨-तà¥à¤°à¤¯ सेवैं सदा।
मà¥à¤¨à¤¿-साथ में वा à¤à¤• विचरैं चहैं नहिं à¤à¤µ-सà¥à¤– कदा॥
यों है सकलसंयमचरित, सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡ सà¥à¤µà¤°à¥‚पाचरन अब।
जिस होत पà¥à¤°à¤—टै आपनी निधि, मिटै पर की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ सब॥7॥
जिन परमपैनी सà¥à¤¬à¥à¤§à¤¿ - छैनी, डारि अनà¥à¤¤à¤° à¤à¥‡à¤¦à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤
वरणादि अरॠरागादि तैं, निज-à¤à¤¾à¤µ को नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ किया।।
निजमाहिं निज के हेतॠनिज कर, आपको आपै गहà¥à¤¯à¥‹à¥¤
गà¥à¤£ गà¥à¤£à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¥‡à¤¯, मंà¤à¤¾à¤° कछॠà¤à¥‡à¤¦ न रहà¥à¤¯à¥‹à¥¥ 8॥
जहठधà¥à¤¯à¤¾à¤¨ धà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾ धà¥à¤¯à¥‡à¤¯ को न, विकलà¥à¤ª वच à¤à¥‡à¤¦ न जहाà¤à¥¤
चिदà¥à¤à¤¾à¤µ करà¥à¤® चिदेश करà¥à¤¤à¤¾, चेतना किरिया तहाà¤à¥¥
तीनों अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अखिनà¥à¤¨ शà¥à¤§ उपयोग की निशà¥à¤šà¤² दसा।
पà¥à¤°à¤—टी जहाठदृग-जà¥à¤žà¤¾à¤¨-वà¥à¤°à¤¤ ये तीनधा à¤à¤•ै लसा ॥ 9॥
परमाण नय निकà¥à¤·à¥‡à¤ª को न उदà¥à¤¯à¥‹à¤¤ अनà¥à¤à¤µ में दिखैं।
दृग-जà¥à¤žà¤¾à¤¨-सà¥à¤–-बलमय सदा, नहिं आन à¤à¤¾à¤µ जॠमो विखैं।
मैं साधà¥à¤¯ साधक मैं अबाधक, करà¥à¤® अरॠतसॠफलनितैं।
चितॠपिणà¥à¤¡ चणà¥à¤¡ अखणà¥à¤¡ सà¥à¤—à¥à¤£à¤•रणà¥à¤¡ चà¥à¤¯à¥à¤¤ पà¥à¤¨à¤¿ कलनितैं॥10॥
यों चिनà¥à¤¤à¥à¤¯ निज में थिर à¤à¤¯à¥‡, तिन अकथ जो आननà¥à¤¦ लहà¥à¤¯à¥‹à¥¤
सो इनà¥à¤¦à¥à¤° नाग नरेनà¥à¤¦à¥à¤° वा, अहमिनà¥à¤¦à¥à¤° के नाहीं कहà¥à¤¯à¥‹à¥¥
तब ही शà¥à¤•लधà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤—à¥à¤¿à¤¨ करि, चउ-घातिविधि कानन दहà¥à¤¯à¥‹à¥¤
सब लखà¥à¤¯à¥‹ केवलजà¥à¤žà¤¾à¤¨ करि, à¤à¤µà¤¿à¤²à¥‹à¤• को शिवमग कहà¥à¤¯à¥‹à¥¥11॥
पà¥à¤¨à¤¿ घाति शेष अघातिविधि, छिन माहिं अषà¥à¤Ÿà¤®-à¤à¥‚ बसैं।
वसà¥à¤•रà¥à¤® विनसै सà¥à¤—à¥à¤£ वसà¥, समà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¥à¤µ आदिक सब लसैं॥
संसार खार अपार पारावार, तरि तीरहिं गये।
अविकार अकल अरूप शà¥à¤šà¤¿,चिदà¥à¤°à¥‚प अविनाशी à¤à¤¯à¥‡ ॥ 12॥
निजमाà¤à¤¹à¤¿ लोक अलोक गà¥à¤£, परजाय पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬à¤¿à¤¤ थये।
रहि हैं अननà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¤à¤•ाल, यथा तथा शिव परिणये॥
धनि धनà¥à¤¯ हैं जे जीव, नर-à¤à¤µ पाय, यह कारज किया।
तिनही अनादि à¤à¥à¤°à¤®à¤£ पञà¥à¤š पà¥à¤°à¤•ार तजि वर सà¥à¤– लिया॥13॥
मà¥à¤–à¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤šà¤¾à¤° दà¥à¤à¥‡à¤¦ यों बड़à¤à¤¾à¤—ि रतà¥à¤¨à¤¤à¥à¤°à¤¯ धरैं।
अरॠधरैंगे ते शिव लहैं तिन, सà¥à¤¯à¤¶-जल-जग-मल हरैं॥
इमि जानि आलस हà